रेंत से अल्फ़ाज़

रेंत की तरहगुस्सैल समंदर की लहरोंमें जो बह जाएंकड़ी धूप में चलने वालों केपैरों को जो सुलगा जाएंसर्द रात में थके हुएबदन को जो ठिठुरा जाएंऔर कुछ नहीं बसरेंत की तरहआजकल फिसलतें हुएंये तेरे और मेरे अल्फ़ाज़